gaadia luhar

गाड़ी लुहार राजस्थान की एक ऐसे जाती हैं  जो की खानाबदोश  जिंदगी जीती  हैं   ,आज इस समाज काफी बदलाव हुए हैं अब गाडी लुहार कम  दिखाई दिए जाते हैं.इन्हे गाडी लुहार इस्सलिये कहते थे क्युकी ये बैलगाड़ी से एक जगह से द्दूसरे चलते थे। और कभी एक महीना इस गांव कभी उस गांव डेरा डालते थे और वह डेरा डालकर लोहे के बर्तन बना केर वह के लोगो को बेचते थे ,जिसे चिमठा ,तवा ,चालिनी और भी लोहे का सामान। लोग इस के बदले इनको पसे देते थे और अनाज ,इनके साथ पूरा समूह होता था। मुझे आज भी याद मेरे बचपन मैं मेरे गांव आते थे और कुवे के पास डेरा डालते थे। हम बचे देखने जाते की ये गाडी के नीचे घेर किसे बनाते हैं ये सब  चीज़े हमे रोमांचित कर  तहि थी ।इनके आने से गांव मैं एक रौनक आ जाती थी और ये हेर साल  आते थे. इस सुमह की  औरते बहुत सारी चांदी के गहने पहने थे थे। ये लोग बहुत मेहनती होते हैं। और बहुत अचे मिलनसार लोग होते थे। आज  भी कही जगह गाडी लुहार खानाबदोश जिंदगी जी रहे हैं।  आज भी वो बर्तन बनाते हैं  और अपना जीवन यापन करथे हैं कही दखाई देते हैं थो वो बचपन की याद हसी के रूप म आ जाती हैं इन्हे देखकर अच्छा लगथा हैं। परन्तु कही एक दर्द रह जाता हैं की आज भी ये इस तरह जीवन यापन केर रहे  लोहे की जगह  फैंसी बर्तनो ने ली हैं। आज बर्तन भी आपकी आधुनिक जीवनशैली दिखने का एक साधन बन गया हैं। पहले जब  लोहे के हाथ के बर्तन लेते थे थो उनकी  भी कुछ आय हो जाती और हमारी सेहत मैं आयरन की कमी भी नहीं रहती थी। किन्तु आज लोगो ने इन लोहे के बर्तनो का उपयोग काम केर दिया हैं। आज कही गाडीलोहुआर दूसरे काम करते हैं आपने पुस्तैनी काम छोड़कर ,अगर आप कही किसी गाडीलुहार को  देखे और अगर वो लोहे के बर्तन बनाते  हैं थो कुछ खीरदे जरूर।आप की की छोटी सी मदद किसी को एक मदद  दे जायगी और आपको एक संतोष एक मासूम हसी दे जायगी।


  

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