danke ka kaam

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राजस्थान अपने हाथ की हुई जरी  -गोटे के काम के लिए जाना जाता हैं।  यहाँ कपडे पर हाथ से तरह-२ की एम्ब्रोडरी की जाती हैं इनमे ऐसा ही एक काम डंके का काम जो राजस्थान में  बहुत प्रसिद हैं। डंके का काम जो की एक परकार की मेटल एम्ब्रोडरी होती हैं उदयपुर और उसके आस-पास किया जाता हैं। इस काम में छोटे -२ मेटल के स्क्वायर को ज़रदोसी के साथ पिरोया जाता हैं डंका के छोटा स्क्वायर क्यूब होता हैं. इस क्यूब की साइज  1.5  सेटिमटेर से जायदा नहीं होती हैं 
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इससे कोर-पति का काम भी कहा जाता हैं . वैसे तो ओरिजनल  डंका सोने और चांदी से बनता हैं परन्तु आजकल इससे गोल्ड प्लेटेड बनाया जाता हैं पहले डंका सिल्वर सीट  से बनाते हैं  फिर इसको गरम कर के इस पैर सोने की परत चढ़ाते हैं।  पहले इससे अच्छे  से बना कर पतली चांदी से पोलिश करते हैं इसमें चांदी की परत की शुदता 98 प्रतिसत होती थी डंके के काम की कीमत की गणना उसके वजन से होती हैं. 
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                                          इस तकनीक को अधिकतर कपड़ो जिसे साटन ,शिफॉन और सिल्क पर उपयोग करते हैं कपडे को लकड़ी  के सांचे में लगा केर उस पर कारीगर ये काम करते हैं डंके को कपडे पर फैलाकर  आवश्कता के अनुसार लगाया जाता हैं डंके काम सुई-धागे से कपडे पर किया जाता हैं. तीन से पांच सोने और चांदी के तारो के साथ हर  डंके को किनारे पर पिरोया जाता हैं इससे आठ टांको के साथ सुई पो कर घाठ लगा दी जाती हैं. हाथ से सिलाई नीचे की तरफ की जाती हैं डंके में जो मोटिफ उपयोग में आते हैं वो प्रकर्ति से प्रेरणा लिए हुए होते हैं जिसे चाँद  सूरज ,मोर अलग-२ फूल -पतिया।  




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